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यूक्रेन-रूस युद्ध

भारत में आई गेहूं के दाम में गिरावट, सरकार के इस कदम से हुआ असर

भारत में आई गेहूं के दाम में गिरावट, सरकार के इस कदम से हुआ असर

हाल फिलहाल में देश और दुनिया में गेहूं के रेट बहुत तेज़ी से बढ़े थे, जिसको देखते हुए सरकार ने भारत से आटा निर्यात (Flour Export) को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया था। अब आटा निर्यात प्रतिबन्ध का असर भी दिख रहा है और देश में गेहूं का दाम पहले के मुकाबले काफी गिर गया है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बिल्कुल ही सस्ता हो गया है।

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आटा, मैदा और सूजी के निर्यात को अब देना होगा गुणवत्ता प्रमाण पत्र अभी भी गेहूं का दाम MSP से ज्यादा ही है। गौर करने वाली बात है कि हर साल तेज गर्मी पड़ने की वजह से देश में गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था, जिसके चलते देश में गेहूं संकट गहरा गया है। उसके परिणामस्वरूप गेहूं और आटे के दाम में बेतरतीब बढ़ोतरी देखने को मिली है। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक 14 सालों में ये पहली बार है जब गेहूं का स्टॉक अगस्त माह आते-आते इतना कम हो गया है। मौजूदा समय में गेहूं का MSP 2015 चल रहा है। पिछले दिनों आटे के निर्यात में प्रतिबंध के साथ गेहूं के दाम 25 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हुए हैं। वैसे बाजार में गेहूं के मौजूदा रेट की बात करें तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में इसका भाव 2500 रुपये प्रति क्विंटल है। ये भाव 25 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट के बाद के हैं। आटे के निर्यात पर सरकार ने अभी फैसला लिया है, लेकिन गेहूं के निर्यात पर सरकार ने बहुत पहले ही फैसला ले लिया था और 13 मई को ही इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी। असल में सिर्फ हमारा देश ही गेहूं संकट का सामना नहीं कर रहा, बल्कि दुनियाभर में यह संकट अपना असर डाल रहा है। वैसे दुनियाभर में इस संकट की असल वजह यूक्रेन-रूस युद्ध (Ukraine-Russia War) है। गौर करने वाली बात है कि यूक्रेन दुनियाभर में अपना गेहूं निर्यात करता है। युद्ध की वजह से वह अपना गेहूं कहीं नहीं भेज रहा था। जिसकी वजह से भारत के गेहूं कि दुनियाभर में डिमांड बढ़ गई थी। चूंकि, भारत में गेहूं संकट होने के कारण 13 मई को ही सरकार ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। वैसे 13 मई के पहले जो डील हो गई थीं, उन्हीं के शिप 13 मई के बाद भारत से गेहूं लेकर रवाना हुए थे।

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इस साल वक्त के पहले गर्मी शुरू होने से देश में तीन-चार महीने तापमान बहुत तेज रहा जिसकी वजह से मध्यप्रदेश और पंजाब में गेहूं की पैदावार पर जोरदार असर पड़ा है। कृषि विभाग के मुताबिक इस साल 3 प्रतिशत कम पैदावार हुई है। इसी की वजह से देश यह संकट झेल रहा है। यही नहीं अगस्त आते-आते देश का गेहूं स्टॉक अपने सबसे निचले स्तर पर है। गौर करने वाली बात है कि भारत गेहूं पैदा करने के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। लेकिन निर्यात करने में भारत टॉप-10 में भी नहीं है। इसमें पहले नंबर पर रूस और पांचवें नंबर पर यूक्रेन है। ये दोनों ही देश युद्ध में उलझे हुए हैं। ऐसे में दुनियाभर में गेहूं की कमी आना स्वभाविक है।
भारत में अब भर जाएंगें अन्न भंडार, जाने सरकार किस योजना पर कर रही है काम

भारत में अब भर जाएंगें अन्न भंडार, जाने सरकार किस योजना पर कर रही है काम

भारत में काफी ज्यादा लोग कृषि में लगे हुए हैं, देश का काफी ज्यादा हिस्सा खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत में काफी जमीन उपजाऊ है, लेकिन जहां पर बंजर जमीन है वहां पर भी सरकार द्वारा अनेक तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं ताकि वहां पर खेती की जा सके। किसान भी यहां पर खेती करने में कोई कसर नहीं रहने देते हैं और उत्पादन बढ़ाने के लिए रात दिन प्रयासरत रहते हैं। लेकिन फिर भी बहुत बार ऐसा होता है, कि किसानों को अपनी की गई मेहनत का फल पूरी तरह से नहीं मिल पाता है और किसी न किसी कारण से फसल बर्बाद हो जाती है या फिर उम्मीद के अनुसार उत्पादन नहीं हो पाता है। इस चीज के कई कारण है, लेकिन जलवायु परिवर्तन उनमें से एक है। इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए ही भारत सरकार ने एक योजना बनाने के बारे में सोचा है। माना जा रहा है, कि इस योजना के बाद भारत में अन्न भंडार हमेशा के लिए भरे रहेंगे और किसी भी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

घरेलू खाद्य संकट के निपटारे की ओर बढ़ेगा कदम

आजकल आए दिन कहीं ना कहीं कोई समस्या चलती रहती है, ऐसी ही कुछ चीजों से खाद्य संकट पैदा होना जाहिर सी बात है। जैसे- रूस-यूक्रेन युद्ध, कोरोना महामारी। इसके अलावा आजकल जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक घटनाओं से भी फसलों को नुकसान हो रहा है, जिसका असर किसी भी देश के अन्य भंडार पर सीधे तौर से पड़ता है। ऐसे में भारत ने खाद्य संकट को खत्म करने के लिए कुछ कदम उठाने का फैसला किया है। भारत सरकार अब दुनिया के 'सबसे बड़ा अनाज भंडारण योजना' के विकास-विस्तार पर काम कर रही है।


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इस स्कीम के तहत जल्द ही कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण समेत दूसरे मंत्रालयों के तहत आने वाली कुछ योजनाओं को भी जोड़ दिया जाएगा। ये इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोरोना महामारी से लेकर यूक्रेन-रूस युद्ध और दूसरी वैश्विक घटनाओं का सीधा असर खाद्य आपूर्ति पर हो रहा है। खाने पीने की सभी चीजों की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जिससे लोगों में और सरकार में घरेलू खाद्य सुरक्षा की चिंता भी बढ़ रही है।

किया जाएगा साइलो भंडारण तरीके का इस्तेमाल

साइलो भंडारण तकनीक अनाज भंडारण की एक आधुनिक तकनीक है, जो पुराने जमाने में किए गए भंडारण के तरीके से कहीं ज्यादा सुरक्षित मानी गई है। साथ ही, इसमें पहले के मुकाबले ज्यादा अनाज का भंडारण भी किया जा सकता है। इसमें 12,500 टन भंडारण क्षमता के स्टील के टैंक बने होते हैं। पहले गोदाम आदि में बोरियों में भरकर अनाज को रखा जाता था, जिसमें एक के ऊपर दूसरी बोरी रखी जाती थी। बारिश या फिर किसी भी तरह की आपदा के चलते ऐसे में फसलों के बर्बाद होने की संभावना ज्यादा रहती है। लेकिन साइलो भंडारण में आधुनिक तकनीकों से लैस टैंकों में अनाज की सुरक्षित रखा जाता है, जिसमें नुकसान की कोई संभावना नहीं होती।


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अभी कुछ दिन पहले ही बाली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया और वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, कि मौजूदा उर्वरक की कमी खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। ऐसे में आधुनिक अनाज भंडारण की योजना पर काम करना भविष्य में फायदेमंद साबित होगा।